पञ्चमूलं त्रिदोषघ्नं वातघ्नं लघुसंज्ञकम।
ज्वरकासश्वासशूलमन्दाग्न्यरुचिनाशम्॥(ध.नि./मिश्रक/२२)
बिल्वाग्निमन्थटिण्टुकपाटला: काश्मर्यश्चेति महत्।(सु.सू.)
श्रीफलः सर्वतोभद्रा पाटला गणिकारिका।
स्योनाक:पञ्चभिश्चैतैः पञ्चमूलं महन्मतम्॥ (महौ.नि./सं. वर्ग/१८)
श्रीफल: सर्वतोभद्रा पाटला गणिकारिका।
श्योनाक: पञ्चभिश्चैतेः पञ्चमूलं महन्मतम् ॥ (भा.प्र./गुडू./२९)
बिल्वोऽग्निमन्थः श्योनाक: काश्मर्यः पाटला तथा।
सर्वेस्तु मिलितैरेतैः स्यान्महापञ्चमूलकम्॥(रा.नि. मिश्रक/२७)
बिल्वकाश्मर्यतर्कारिपाटलाटिण्टुकैर्मतम् ।(कै.नि. औषध/७१)
बिल्वोऽग्निमंन्थः श्योनाक: काश्मर्यः पाटला तथा।
ज्ञेयं महापञ्चमूलं .......... ... . .॥ (ध.नि./मिश्रक/१७)
व्याख्या -- बिल्व , अग्निमन्थ , श्योनाक , पाटला और गम्भारी इन पांचो की मूल बृहतपंचमूल कहलाती हैं।
बृहतपंचमूल के गुणकर्म ----
तिक्तं कफवातघ्नं पाके लध्वग्निदीपनम् ।
मधुरानुरसं चैव पञ्चमूलं महन्मतम् ॥ (सुश्रुत)
व्याख्या ---
★ तिक्त रस युक्त तथा कफवात शामक होता हैं।
★ विपाक में लघु व दीपन करने वाला होता हैं। तथा अनुरस में मधुर होता हैं।
पञ्चमूलं महत् तिक्तं कषायं कफवातनुत् ।
मधुरं श्वासकासघ्नमुष्णं लघ्वग्निदीपनम् ॥(भा.प्र./गुडू./३०)
पञ्चमूलं कषायोष्णं सतिक्तं कफवातजित् ।
मधुरानुरसं तिक्तं पाके लध्वग्निदीपनम्॥ (कै.नि./औषध/७१-७२)
व्याख्या ---
★ तिक्त व कषाय रस युक्त होता हैं।
★ कफ व वात का नाश करता हैं।
★ उष्ण वीर्य वाला होता हैं।
★ लघु व श्वास का नाश करने वाला तथा दीपन करने वाला होता हैं।
बिल्वादिभिः पञ्चभिरेतत्स्यात्पञ्चमूलं महदग्निकारि।
लघूष्णतिक्तं रसतः कषायं मेदःकफश्वाससमीरहारि॥ (म.पा.नि./हरी./५७)
व्याख्या ---
★ अग्नि को बढ़ाने वाला होता हैं।
★ लघु , उष्ण तथा तिक्त व कषाय रस वाला होता हैं।
★ मेद , कफ , श्वास व वायु का शमन करने वाला होता हैं।
जयेत्कषायं तिक्तोष्णं पंचमूलं कफानिलौ ।(अ.स.सू. १२/५७)
व्याख्या --
★ तिक्त उष्ण व कफ वात का नाश करने वाला होता हैं।
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