Wednesday, 7 April 2021

वल्ली पंचमूल


 विदारीसारिवारजनीगुडूच्योऽजश्रृंगी चेति वल्लीसंज्ञः। (सु.सू. ३८/७३)


निशामृता मेषश्रृंगी गोपवल्ली विदारिका। 
वल्याख्यं पंचमूलं ......................(कै.नि. मिश्रक/५) 

अजश्रृंगी हरिद्रा च विदारी सारिवाऽमृता। 
वल्ल्याख्यं ........................॥(अ.सं. १२४६१-६२)

व्याख्या --- विदारी , सारिवा , हरिद्रा , गुडूची और अजश्रृंगी इन पंचो की मूल वल्ली पञ्चमूल कहलाती हैं। 
विमर्श -- यहाँ पर रजनी से मंजिष्ठा लेना उचित हैं। 

वल्ली पञ्चमूल के गुणकर्म ---


रक्तपित्तहरौ ह्येतौ शोफत्रयविनाशनौ । 
सर्वमेहहरौ चैव शुक्रदोषविनाशनौ ।। (सु.सु. ३८/७६) 

व्याख्या --- 
★ कण्टक पञ्चमूल व वल्ली पंचमूल रक्तपित्त का शमन करते हैं। तीनों प्रकार के शोथ , सभी प्रकार के प्रमेह और शुक्र दोष का नाश करते हैं। 

सर्वदोषहरे च ते।(अ.सं. १२/६२) 

व्याख्या --- कण्टक पञ्चमूल व वल्ली पञ्चमूल सभी प्रकार के दोषो का नाश करती हैं। 


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