विदारीसारिवारजनीगुडूच्योऽजश्रृंगी चेति वल्लीसंज्ञः। (सु.सू. ३८/७३)
निशामृता मेषश्रृंगी गोपवल्ली विदारिका।
वल्याख्यं पंचमूलं ......................(कै.नि. मिश्रक/५)
अजश्रृंगी हरिद्रा च विदारी सारिवाऽमृता।
वल्ल्याख्यं ........................॥(अ.सं. १२४६१-६२)
व्याख्या --- विदारी , सारिवा , हरिद्रा , गुडूची और अजश्रृंगी इन पंचो की मूल वल्ली पञ्चमूल कहलाती हैं।
विमर्श -- यहाँ पर रजनी से मंजिष्ठा लेना उचित हैं।
वल्ली पञ्चमूल के गुणकर्म ---
रक्तपित्तहरौ ह्येतौ शोफत्रयविनाशनौ ।
सर्वमेहहरौ चैव शुक्रदोषविनाशनौ ।। (सु.सु. ३८/७६)
व्याख्या ---
★ कण्टक पञ्चमूल व वल्ली पंचमूल रक्तपित्त का शमन करते हैं। तीनों प्रकार के शोथ , सभी प्रकार के प्रमेह और शुक्र दोष का नाश करते हैं।
सर्वदोषहरे च ते।(अ.सं. १२/६२)
व्याख्या --- कण्टक पञ्चमूल व वल्ली पञ्चमूल सभी प्रकार के दोषो का नाश करती हैं।
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