Wednesday, 7 April 2021

लघु पंचमूल


तत्र त्रिकण्टकबृहतीद्वयपृथक्पण् र्यो विदारीगन्धा चेति कनीयः ।(सु.सू. ३८/६७)

शालपर्णी पृश्निपर्णी बृहती कण्टकारिका।
तथा गोक्षुरकश्चैव पञ्चमूलं लघु स्मृतम्। (ध.नि.मिश्रक/२१)

शालपर्णी पृश्निपर्णी वार्ताकी कण्टकारिका। 
गोक्षुरः पञ्चभिश्चैतैः कनिष्ठं पञ्चमूलकम् ॥ (भा.प्र./गुडू./४७) 

ह्रस्वं बृहत्यंशुमतीद्वयगोक्षुरकैः स्मृतम् ।(अ.सं.सू./६०) 

ह्रस्वं बृहत्यंशुमतीद्वयगोक्षुरकैः स्मृतम्।(कै.नि./औषध/७२) 

शालपर्णी पृश्निपर्णी बृहती कण्टकारिका। 
तथा गोक्षुरकश्चेति लध्विदं पञ्चमूलम्॥ (राजनिघण्टु मिश्रक/२६) 

एरण्डबृहतीद्वयं पृथक्पर्णी सालपर्णी विदारीगन्धादौ। (सौश्रुत निघण्टु)

व्याख्या--- शालपर्णी , पृश्निपर्णी , बृहती , कण्ठ्कारी और गोक्षुर इन पांचो की मूल का मिश्रण लघु पञ्चमूल कहलाता हैं। 

लघु पञ्चमूल के गुणकर्म --- 


कषायतिक्तमधुरं कनीय: पञ्चमूलकम् । 
वातघ्नं पित्तशमनं बृंहणं बलवर्धनम् ॥(सु.सु. ३८/६७) 

व्याख्या --- 
★ लघु पञ्चमूल कषाय , तिक्त व मधुर रस प्रधान होता हैं। 
★ वात-पित्त का नाश करने वाला होता हैं। 
★ बृंहण और बल बढ़ाने वाला होता हैं। 

पञ्चमूलं लघु स्वादु बल्यं पित्तानिलापहम्। 
नात्युष्णं बृहणं ग्राहि ज्वरश्वासाश्मरीप्रणुतम्॥ (भा.प्र./गुडू./४८) 

व्याख्या --- 
★ गुण में लघु , मधुर रस , पित्त-वात का नाश करने वाला होते हैं। 
★ कुछ उष्ण , बृंहण , ग्राही , ज्वर और श्वास नाशक होता हैं। 

स्वादुपाकरसं नातिशीतोष्णं सर्वदोषजित् ॥ (कै.नि./औषध/७३) 

व्याख्या --- 
★ रस व विपाक में मधुर होता हैं। 
★ वीर्य में अनुष्ण तथा त्रिदोष का नाश करने वाला होता हैं। 

ह्रस्वाख्यं पञ्चमूलं स्यात्पञ्चभिर्गोखुरादिभिः। 
बल्यं पित्तानिलहरं नात्युष्ण स्वादु बृंहणम् ॥(म.पा.नि./हरी/७१)

व्याख्या ---- 
★ बल्य , पित्त वात का नाश करने वाला होता हैं। 
★ वीर्य में अनुष्ण तथा मधुर रस होता हैं।
★ बृंहण करने वाला होता हैं। 


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