शालपर्णी पृश्निपर्णी बृहती कण्टकारिका।
तथा गोक्षुरकश्चैव पञ्चमूलं लघु स्मृतम्। (ध.नि.मिश्रक/२१)
शालपर्णी पृश्निपर्णी वार्ताकी कण्टकारिका।
गोक्षुरः पञ्चभिश्चैतैः कनिष्ठं पञ्चमूलकम् ॥ (भा.प्र./गुडू./४७)
ह्रस्वं बृहत्यंशुमतीद्वयगोक्षुरकैः स्मृतम् ।(अ.सं.सू./६०)
ह्रस्वं बृहत्यंशुमतीद्वयगोक्षुरकैः स्मृतम्।(कै.नि./औषध/७२)
शालपर्णी पृश्निपर्णी बृहती कण्टकारिका।
तथा गोक्षुरकश्चेति लध्विदं पञ्चमूलम्॥ (राजनिघण्टु मिश्रक/२६)
एरण्डबृहतीद्वयं पृथक्पर्णी सालपर्णी विदारीगन्धादौ। (सौश्रुत निघण्टु)
व्याख्या--- शालपर्णी , पृश्निपर्णी , बृहती , कण्ठ्कारी और गोक्षुर इन पांचो की मूल का मिश्रण लघु पञ्चमूल कहलाता हैं।
लघु पञ्चमूल के गुणकर्म ---
कषायतिक्तमधुरं कनीय: पञ्चमूलकम् ।
वातघ्नं पित्तशमनं बृंहणं बलवर्धनम् ॥(सु.सु. ३८/६७)
व्याख्या ---
★ लघु पञ्चमूल कषाय , तिक्त व मधुर रस प्रधान होता हैं।
★ वात-पित्त का नाश करने वाला होता हैं।
★ बृंहण और बल बढ़ाने वाला होता हैं।
पञ्चमूलं लघु स्वादु बल्यं पित्तानिलापहम्।
नात्युष्णं बृहणं ग्राहि ज्वरश्वासाश्मरीप्रणुतम्॥ (भा.प्र./गुडू./४८)
व्याख्या ---
★ गुण में लघु , मधुर रस , पित्त-वात का नाश करने वाला होते हैं।
★ कुछ उष्ण , बृंहण , ग्राही , ज्वर और श्वास नाशक होता हैं।
स्वादुपाकरसं नातिशीतोष्णं सर्वदोषजित् ॥ (कै.नि./औषध/७३)
व्याख्या ---
★ रस व विपाक में मधुर होता हैं।
★ वीर्य में अनुष्ण तथा त्रिदोष का नाश करने वाला होता हैं।
ह्रस्वाख्यं पञ्चमूलं स्यात्पञ्चभिर्गोखुरादिभिः।
बल्यं पित्तानिलहरं नात्युष्ण स्वादु बृंहणम् ॥(म.पा.नि./हरी/७१)
व्याख्या ----
★ बल्य , पित्त वात का नाश करने वाला होता हैं।
★ वीर्य में अनुष्ण तथा मधुर रस होता हैं।
★ बृंहण करने वाला होता हैं।
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