अभीरुवीराजीवन्तीजीवकर्षभकैः स्मृतम्।(ध.नि./मिश्रक/२५, अ.हृ.सू.६/६०, अ.सं.सू. १२/६०)
शाकश्रेष्ठाऽभीरुपत्रीवीराजीवकर्षभकैः।(कै.नि./औषध/७६)
व्याख्या --- शतावरी , काकोली , जीवन्ती , जीवक और ऋषभक इन पांचो की मूल जीवनीय पञ्चमूल कहलाती हैं।
जीवनीय पञ्चमूल के गुणकर्म ---
जीवनाख्यं च चक्षुष्यं वृष्यं पित्तानिलापहम् ॥(ध.नि. ७/२५, अ.हृ.सू. ६/६०)
व्याख्या ---
★ चक्षुष्य अर्थात नेत्र के लिए हितकारी होता हैं।
★ वृष्य व पित्त-वात का नाश करता हैं।
जीवनाख्यं पंचमूलं वृष्यं पित्तानिलापहम्।
चक्षुष्यं बृहणं बल्यं दाहतृष्णाज्वरप्रणुत्॥ (कै.नि/औषधि/७७)
व्याख्या ----
★ वृष्य व पित्त-वात का नाश करता हैं।
★ चक्षुष्य , बृंहण , बल्य , दाह , तृष्णा और ज्वर का नाश करता हैं।
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