Wednesday, 7 April 2021

चतुरुषण

 त्र्युषणं सकणामूलं कथितं चतुरूषणम्। (भावप्रकाश /हरीतक्यादि/६६)

…………… तत्स्यात्सग्रन्थि चतुरूषणम्। (म.पा.नि. शुण्ठ्यादि/१५) 

व्याख्या --- त्रिकटु में पिप्पलीमूल मिलाना चतुरुषण कहलाता हैं। 

चतुरुषण के गुणकर्म  ---- 


व्योषस्येव गुणाः प्रोक्ता अधिकाश्चतुरूषणे॥ (भावप्रकाश/हरीक्यादि/६६)

व्याख्या -- चतुरुषण में त्रिकटु के समान गुण होते हैं।  तथा चतुरुषण त्रिकटु से अधिक उष्ण होता हैं। 


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