त्र्युषणं सकणामूलं कथितं चतुरूषणम्। (भावप्रकाश /हरीतक्यादि/६६)
…………… तत्स्यात्सग्रन्थि चतुरूषणम्। (म.पा.नि. शुण्ठ्यादि/१५)
व्याख्या --- त्रिकटु में पिप्पलीमूल मिलाना चतुरुषण कहलाता हैं।
चतुरुषण के गुणकर्म ----
व्योषस्येव गुणाः प्रोक्ता अधिकाश्चतुरूषणे॥ (भावप्रकाश/हरीक्यादि/६६)
व्याख्या -- चतुरुषण में त्रिकटु के समान गुण होते हैं। तथा चतुरुषण त्रिकटु से अधिक उष्ण होता हैं।
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