बलापुनर्नवैरण्डशूर्पपर्णीद्वयेन तु।(अ.हृ.सूत्र. ६)
बलापुनर्नवैरण्डशूर्पपर्णीद्वयेन च।(ध.नि./मिश्रक/२०)
बलापुनर्नवैरण्डसूर्यपर्णीद्वयेन च।
एकत्र योजितेनैतन्मध्यमं पञ्चमूलकम् ॥ (रा.नि./मिश्रक/२९)
माषपर्णीमुद्गपर्णीबलैरण्डपुनर्नवैः।
मध्यमाख्यं पंचमूलं कफवातहरं परम्॥(कै.नि.औ./७५)
मुद्गपर्णीमाषपर्णीबलैरण्डपुनर्नवैः।
मध्यमाख्यं ..........................॥ (कै.नि./मिश्रक/४)
व्याख्या -- बला , पुनर्नवा , एरण्ड , शालपर्णी व पृश्निपर्णी , इन पांचो की मूल मध्यम पञ्चमूल कहलाती हैं।
मध्यम पञ्चमूल के गुणकर्म ---
मध्यमं कफवातघ्नं नातिपित्तकरं स्मृतम्।(अ.हृ.सूत्र. ६/७०)
मध्यमं कफवातघ्नं नातिपित्तकरं सरम्।(ध.नि. ७/२०)
व्याख्या ---
★ यह कफ-वात का नाश करता हैं। लेकिन पित्त को नहीं बढ़ाता हैं।
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