Wednesday, 7 April 2021

त्रिकटु

विश्वोपकुल्या मरिचं त्रयं त्रिकटु कथ्यते। 

कटुत्रिकं तु त्रिकटु त्र्यूषणं व्योष उच्यते॥ (भाव./हरी/६२)

पिप्पली मरिचं शुण्ठी त्रयमेतद्विमिश्रितम् । 
त्रिकटु त्र्यूषणं त्र्यूषं कटुत्रयकटुत्रिकम् ॥  (रा. नि. मिश्रक/२)

पिप्पली मरिचं शुण्ठी त्रयमेतद्विमिश्रितम् । 
त्रिकटु त्र्यूषणं व्योषं कटुत्रयमिहोच्यते ॥ (ध. नि./मिश्रक/५)

विश्वोपकुल्या मरिचत्र्यूषणं कटुकं कटु । 
व्योषं कटुत्रयं ……………..||

व्याख्या -- पिप्पली , मरिच , शुण्ठी इन तीनों के समान भाग को मिलाने पर त्रिकटु कहलाता हैं। फलत्रिक, त्रिकटु , त्र्यूषण , त्र्युष , कटुत्रिक , कटुत्रय और व्योष ये आपस में पर्याय होते हैं। 

त्रिकटु के गुणकर्म -- 


त्र्यूषणं दीपनं हन्ति श्वासकासत्वगामयान्।
गुल्ममेहकफस्थौल्यमेदःश्लीपदपीनसान् ॥ (भा. प्र./हरीतक्यादि) 

त्र्यूषणं दीपनं हन्ति श्वासकासत्वगामयान्।
गुल्ममेहकफस्थौल्यमेदःश्लीपदपीनसान् ॥ (म.पा.नि.शुण्ठ्या ./१५) 

व्याख्या --
★ त्रिकटु दीपन करने वाला होता हैं। 
★ श्वास , कास तथा त्वचा रोगों का नाश करने वाला होता हैं। 
★ गुल्म , प्रमेह , कफज रोग , स्थौल्य , मेद , श्लीपद और पीनस रोग में लाभदायक होता हैं। 

दीपनं रुचिदं वातश्लेष्ममन्दाग्निशूलनुत् ।(ध.नि.मिश्रक/५) 

व्याख्या --
★ दीपन करने वाला होता हैं। 
★ रूचि को बढ़ाने वाला होता हैं। 
★ वात- कफ रोंगो का नाश करने वाला होता हैं। 
★ मन्दाग्नि का नाश करने वाला होता हैं, तथा शूल का नाश करता हैं।


No comments:

Post a Comment

पंचकोल

  पिप्पली पिप्पलीमूलं चव्यचित्रकनागरैः।  पञ्चभिः कोलमात्रं यत्पञ्चकोलं तदुच्यते ॥(भा.प्र/हरीत./७२)   पिप्पलीपिप्पलीमूलचव्यचित्रकनागरैः। सर्व...