विश्वोपकुल्या मरिचं त्रयं त्रिकटु कथ्यते।
कटुत्रिकं तु त्रिकटु त्र्यूषणं व्योष उच्यते॥ (भाव./हरी/६२)
पिप्पली मरिचं शुण्ठी त्रयमेतद्विमिश्रितम् ।
त्रिकटु त्र्यूषणं त्र्यूषं कटुत्रयकटुत्रिकम् ॥ (रा. नि. मिश्रक/२)
पिप्पली मरिचं शुण्ठी त्रयमेतद्विमिश्रितम् ।
त्रिकटु त्र्यूषणं व्योषं कटुत्रयमिहोच्यते ॥ (ध. नि./मिश्रक/५)
विश्वोपकुल्या मरिचत्र्यूषणं कटुकं कटु ।
व्योषं कटुत्रयं ……………..||
व्याख्या -- पिप्पली , मरिच , शुण्ठी इन तीनों के समान भाग को मिलाने पर त्रिकटु कहलाता हैं। फलत्रिक, त्रिकटु , त्र्यूषण , त्र्युष , कटुत्रिक , कटुत्रय और व्योष ये आपस में पर्याय होते हैं।
त्रिकटु के गुणकर्म --
त्र्यूषणं दीपनं हन्ति श्वासकासत्वगामयान्।
गुल्ममेहकफस्थौल्यमेदःश्लीपदपीनसान् ॥ (भा. प्र./हरीतक्यादि)
त्र्यूषणं दीपनं हन्ति श्वासकासत्वगामयान्।
गुल्ममेहकफस्थौल्यमेदःश्लीपदपीनसान् ॥ (म.पा.नि.शुण्ठ्या ./१५)
व्याख्या --
★ त्रिकटु दीपन करने वाला होता हैं।
★ श्वास , कास तथा त्वचा रोगों का नाश करने वाला होता हैं।
★ गुल्म , प्रमेह , कफज रोग , स्थौल्य , मेद , श्लीपद और पीनस रोग में लाभदायक होता हैं।
दीपनं रुचिदं वातश्लेष्ममन्दाग्निशूलनुत् ।(ध.नि.मिश्रक/५)
व्याख्या --
★ दीपन करने वाला होता हैं।
★ रूचि को बढ़ाने वाला होता हैं।
★ वात- कफ रोंगो का नाश करने वाला होता हैं।
★ मन्दाग्नि का नाश करने वाला होता हैं, तथा शूल का नाश करता हैं।
No comments:
Post a Comment