पिप्पली पिप्पलीमूलं चव्यचित्रकनागरैः।
पञ्चभिः कोलमात्रं यत्पञ्चकोलं तदुच्यते ॥(भा.प्र/हरीत./७२)
पिप्पलीपिप्पलीमूलचव्यचित्रकनागरैः।
सर्वैरकत्र मिलितैः पञ्चभिःपञ्चकोलमुच्यते ॥ (रा.नि.मिश्रक/२४)
पंचकोलकमेतच्च मरिचेन विना स्मृतम् ।
गुल्मप्लीहोदरानाहशूलघ्नं दीपनं परम् ॥ (अ.सं.सू. १२/५५-५६)
पिप्पलीपिप्पलीमूलचव्यचित्रकनागरम् ।
एकत्र मिश्रितैरैभिः पञ्चकोलमुच्यते ॥(ध.नि./मिश्रक/१२)
पिप्पलीमागधमूलचव्यनागरचित्रकैः।
पञ्चकोलम्.....(म.पा.नि./शुण्ठ्यादि/२३)
व्याख्या --- पिप्पली , पिप्पलीमूल , चव्य , चित्रक व सौंठ इन पांचों के मिश्रण को पञ्चकोल कहते हैं।
पञ्चकोल के गुणकर्म ----
पञ्चकोलं रसे पाके कटुकं रुचिकृन्मतम्।
तीक्ष्णोष्णं पाचनं श्रेष्ठं दीपनं कफवातनुत् ॥
गुल्मप्लीहानाहशूलघ्नं पित्तप्रकोपनम्। (भा.प्र./हरीत./७२-७३)
व्याख्या ---
★ पञ्चकोल का रस व विपाक कटु होता हैं।
★ रूचि को बढ़ाने वाला होता हैं।
★ तीक्ष्ण , उष्ण , पाचन व दीपन करने वाला होता हैं।
★ कफ व वात का नाश करने वाला होता हैं।
★ गुल्म , प्लीहा , आनाह , शूल का नाश करने वाला होता हैं।
★ पित्त प्रकोप करने वाला होता हैं।
पञ्चकोलं कफानाहगुल्मशूलारुचीर्जयेत्। (म.पा.नि./शुण्ठ्या/ २३)
व्याख्या --- पञ्चकोल आनाह , गुल्म , शूल और अरुचि का नाश करने वाला होता हैं।
पञ्चकोलं त्रिदोषघ्नं रुच्यं दीपनपाचनम्।
स्वरभेदहरं चैव शूलगुल्मार्तिसारनाशनम्॥ (ध.नि./मिश्रक/१३)
व्याख्या ----
★ पंचकोल त्रिदोष का नाश करने वाला होता हैं।
★ रूचि उत्पन्न करने वाला होता हैं।
★ दीपन , पाचन करने वाला होता हैं।
★ स्वरभेद का नाश करने वाला होता हैं।
★ शूल , गुल्म व अतिसार का नाश करता हैं।