Monday, 19 October 2020

पञ्चमहाभूत द्रव्यों के लक्षण

तत्र द्रव्याणि गुरुखरकठिनमन्दस्थिरविशदसान्द्रस्थूलगन्धगुणबहुलानि पार्थिवानि , तान्युपचयसङ्घातगौरवस्थैर्यकराणि; 


पार्थिव द्रव्य के लक्षण - जो द्रव्य (१) गुरु , (२) खर , (३) कठिन , (४) मन्द , (५) स्थिर , (६) विशद , (७) सान्द्र , (८) स्थूल तथा (९) गन्ध गुण प्रधान वाले द्रव्य पार्थिव द्रव्य होते हैं । इन पार्थिव द्रव्यों का यदि सेवन किया जाये तो शरीर में  वृद्धि , संघात ( शरीर का ठोस होना), गुरुता और स्थिरता उत्पन्न होती है। 


द्रवस्निग्धशीतमन्दमृदुपिच्छिलरसगुणबहुलान्याप्यानि, तान्युपक्लेदस्नेहबन्धविष्यन्दमार्दवप्रह्लादकराणि;


जलीय द्रव्य के लक्षण -जो द्रव्य में (१) द्रव , (२) स्निग्ध , (३) शीत , (४) मन्द , (५, मृदु , (६) पिच्छिल और (७) रस गुण प्रधान वाले द्रव्य जलीय द्रव्य होते हैं । इनके सेवन से ये शरीर में उपक्लेद ( गीलापन), स्नेह (स्निग्धता), बन्ध (सन्धिवन्धनों को समुचित रूप में रखना), विष्यन्द , मार्दव (शरीर में मृदुता उत्पन्न करना) और प्रहाद उत्पन्न करते हैं। 


उष्णतीक्ष्णसूक्ष्मलघुरूक्षविशदरूपगुणबहुलान्याग्नेयानि, तानि दाहपाकप्रभाप्रकाशवर्णकराणि;


तैजस द्रव्य के लक्षण -जो द्रव्य में (१) उष्ण , (२) तीक्ष्ण , (३) सूक्ष्म , (४) लघु , (५) रूक्ष , (६) विशद और (७) रूप गुण प्रधान वाले द्रव्य तैजस द्रव्य होते हैं। ये तैजस द्रव्य सेवन करने पर शरीर में दाह, पाक, प्रभा, प्रकाश और शरीर में वर्ण (रूप ) को विकसित करते हैं । 


लघुशीतरूक्षखरविशदसूक्ष्मस्पर्शगुणबहुलानि वायव्यानि, तानि रौक्ष्यग्लानिविचारवैशद्यलाघवकराणि;


वायव्य द्रव्य के लक्षण - जो द्रव्यों में (१) लघु , (२) शीत , (३) रूक्ष , (४) खर , (५) विशद , (६) सूक्ष्म और (७) स्पर्श गुण प्रधान वाले होते है वे वायव्य द्रव्य कहे जाते हैं । ये वायव्य द्रव्य सेवन करने पर शरीर में रूक्षता, ग्लानि, विचार (गति ) विशदता और लघुता उत्पन्न करते हैं। 


मृदुलघुसूक्ष्मश्लक्ष्णशब्दगुणबहुलान्याकाशात्मकानि, तानि मार्दवसौषिर्यलाघवकराणि||११|| (च.सू.अ.26)


आकाशीय द्रव्य के लक्षण - जो द्रव्यों में (१) मृदु , (२) लघु , (३) सूक्ष्म (४) श्लक्ष्ण और (५) शब्द गुण  प्रधान वाले होते है वे आकाशीय द्रव्य होते हैं। आकाशीय द्रव्य सेवन करने पर शरीर में कोमलता, सुषिरता और लघुता उत्पन्न करते हैं।

Monday, 12 October 2020

पाचन के द्वारा लंघनीय पुरुष

येषां मध्यबला रोगाः कफपित्तसमुत्थिताः|
वम्यतीसारहृद्रोगविसूच्यलसकज्वराः||२०||
विबन्धगौरवोद्गारहृल्लासारोचकादयः|
पाचनैस्तान् भिषक् प्राज्ञः प्रायेणादावुपाचरेत्||२१||(च.सू.अ.22)

पाचन के द्वारा लंघनीय पुरुष --- पाचन द्वारा लंघन उन व्यक्ति में  करते हैं जिनको कफ , पित्त के द्वारा  उत्पन्न रोग मध्यम बल वाला हो, छर्दि , अतिसार , हृदयरोग , विसूचिका , अलसक तथा ज्वर से पीड़ित मनुष्य हो और विबंध हो , शरीर में गुरुता हो , उद्गार अधिक आती हो, हल्लास ( जी मचलाना ) , अरोचक आदि से पीड़ित हो।

Tuesday, 29 September 2020

गुलाब अर्क

ग्रन्थाधार  -अर्क प्रकाश 
रोगाधिकार - नेत्र रोग 
सिद्धान्त -  अर्क कल्पना 
आवश्यक साधन व उपकरण - स्टैनलेस स्टील का पात्र, भापक यंत्र, ईधन,  सूती वस्त्र, कांच की शीशीयां, चूल्हा 

मूलपाठः- 
द्रव्यादधिकसौगन्ध्यं यस्मिन्नर्के प्रदृश्यते। 
जीर्णास्थिपात्रसंक्षिप्तो द्रव्यवर्णः प्रदृश्यते। 
शंखकुन्देन्दुधवलोऽन्यथापात्रान्तरस्थितः। 
जिह्योपरिगतः स्वादं दद्याद्द्रव्यभवं तु यः।। (अर्क.प्रकाश.1/74,75)  

घटक द्रव्य:- 
गुलाब के ताजे फूल 1 भाग, 
जल - 10 भाग 

निर्माण विधि:-गुलाब के फूल की ताजी पंखुडिया 1 भाग लेकर एक स्टेनलैस स्टील के भगौने में 10 लीटर जल में भिगोये प्रातः काल भपके में डालकर सन्धि को आटे से कपडमिट्टी करे व सुखाये भपके को चूल्हे पर चढ़ाकर अग्नि दे । आलवाल में शीतल जल भरने की प्रक्रिया पूर्ववत् रहे। नली के नीचे कांच की शीशी कीप लगाकर रखें जिसमें से बूंद-बूंद गुलाब जल छानकर शीशी में एकत्र होता जायेगा। 
 
अवलोकन:- 
1. प्राप्त अर्क में गुलाब की सुगन्ध आती है 
2. यह पारदर्षी वर्ण का होता है
परीक्षा:- 
1. भपका यंत्र में पानी को लगातार हल्का गर्म होने के बाद बदलते रहे। 
2. ध्यान रहे कि अर्क की अग्नि मंद हो व अर्क जले नही 

सावधानियाॅः- 
1. अर्क निकालते समय तीव्राग्नि का प्रयेाग न करे। 
2. जिस पात्र में अर्क प्राप्त करते है उसे ढककर रखे। 
3. भापका यंत्र में ऊपर का पानी जब गर्म हो जाये तो उसे निकाल पुनः ठण्डा जल भरें। 

वर्ण व स्वरूपः- पारदर्शी सुगन्धित द्रव 

सेवन मात्रा:- 2-2 बूंद आखों में दिन मे 2 बार डालें। 
अनुपान:- 
आमयिक प्रयोग:- नेत्राभिष्यंद आदि नेत्र रोगों, उपयोगी आंखों के स्वास्थ्य के लिये प्रतिदिन लाभप्रद है। प्रवालपिष्टी , अकीक पिष्टी आदि अनेक सौम्य औषधियों में भावना हेतु उपयोगी। 
हानि/वृद्धि:- वाष्प बनने के कारण हानि।
विषेष:-अर्क हेतु द्रव्य के साथ जितना द्रव या जल डाला गया हो प्रायः उसका 3/4 भाग अर्क प्राप्त करें। इसके बाद अर्क में जला हुआ भाग आने लगता है।


 

Sunday, 9 August 2020

सामान्य व विशेष की परिभाषा

सर्वदा सर्वभावानां सामान्यं वृद्धिकारणम्|
ह्रासहेतुर्विशेषश्च, प्रवृत्तिरुभयस्य तु||४४||

सामान्य व विशेष की परिभाषा - सदा सभी भावों की वृद्धि करने वाला सामान्य कहलाता हैं,और ह्रास ( काम करने वाला ) का कारण विशेष हैं। इस आयुर्वेद में सामान्य और विशेष दोनों की प्रवृत्ति ( क्रिया ) से दोष , धातु व मलों की वृद्धि व ह्रास किया जाता हैं। अथार्त चिकित्सा में दोष , धातु व मल को सामान्य करने के लिए या तो कुछ जोड़ा जाता हैं या तो काम किया जाता हैं। यहाँ प्रवृत्तिरुभयस्य सामान्य व विशेष दोनों के लिए आया हैं। 

Wednesday, 29 July 2020

आम

आम एक फल हें।

हिन्दी नाम.

आम्र

प्रमुख कर्म

मूत्रसंग्रहणीय

FAMILY

Anacardiaceae

LATIN  NAME

Mangifera indica

पर्याय

रसाल , चूत , सहकार , पिकवल्लभ , मधुदूत , आम

Eng. Name

Mango

MORPH

वृक्ष

Chem. compo.

Vit A & C , Citric acid    

गुण

लघु,रूक्ष           

रस

कषाय

वीर्य

शीत

विपाक

कटु

आमयिक प्रयोग

हृद्य , रुचिकारक , वृष्य , सारक , गुठली-प्रमेहघ्न

प्रयोज्यांग

फल , फलअस्थि , पत्र , त्वक

विशिष्ट योग

पुष्यानुग चूर्ण

 

 


Monday, 27 July 2020

लेखन कर्म

लेखन कर्म - जैसे खुरचना ( scraping or scarification )

छेदन कर्म

छेदन कर्म - शस्त्र कर्म का कर्म हें इसमे अंग को काट कर अलग किया जाता हें

Saturday, 25 July 2020

भेदन कर्म

भेदन कर्म शस्त्र कर्म का प्रकार हैं इसमे चीरा लगाना होता हैं।

पंचकोल

  पिप्पली पिप्पलीमूलं चव्यचित्रकनागरैः।  पञ्चभिः कोलमात्रं यत्पञ्चकोलं तदुच्यते ॥(भा.प्र/हरीत./७२)   पिप्पलीपिप्पलीमूलचव्यचित्रकनागरैः। सर्व...