तत्र द्रव्याणि गुरुखरकठिनमन्दस्थिरविशदसान्द्रस्थूलगन्धगुणबहुलानि पार्थिवानि , तान्युपचयसङ्घातगौरवस्थैर्यकराणि;
पार्थिव द्रव्य के लक्षण - जो द्रव्य (१) गुरु , (२) खर , (३) कठिन , (४) मन्द , (५) स्थिर , (६) विशद , (७) सान्द्र , (८) स्थूल तथा (९) गन्ध गुण प्रधान वाले द्रव्य पार्थिव द्रव्य होते हैं । इन पार्थिव द्रव्यों का यदि सेवन किया जाये तो शरीर में वृद्धि , संघात ( शरीर का ठोस होना), गुरुता और स्थिरता उत्पन्न होती है।
द्रवस्निग्धशीतमन्दमृदुपिच्छिलरसगुणबहुलान्याप्यानि, तान्युपक्लेदस्नेहबन्धविष्यन्दमार्दवप्रह्लादकराणि;
जलीय द्रव्य के लक्षण -जो द्रव्य में (१) द्रव , (२) स्निग्ध , (३) शीत , (४) मन्द , (५, मृदु , (६) पिच्छिल और (७) रस गुण प्रधान वाले द्रव्य जलीय द्रव्य होते हैं । इनके सेवन से ये शरीर में उपक्लेद ( गीलापन), स्नेह (स्निग्धता), बन्ध (सन्धिवन्धनों को समुचित रूप में रखना), विष्यन्द , मार्दव (शरीर में मृदुता उत्पन्न करना) और प्रहाद उत्पन्न करते हैं।
उष्णतीक्ष्णसूक्ष्मलघुरूक्षविशदरूपगुणबहुलान्याग्नेयानि, तानि दाहपाकप्रभाप्रकाशवर्णकराणि;
तैजस द्रव्य के लक्षण -जो द्रव्य में (१) उष्ण , (२) तीक्ष्ण , (३) सूक्ष्म , (४) लघु , (५) रूक्ष , (६) विशद और (७) रूप गुण प्रधान वाले द्रव्य तैजस द्रव्य होते हैं। ये तैजस द्रव्य सेवन करने पर शरीर में दाह, पाक, प्रभा, प्रकाश और शरीर में वर्ण (रूप ) को विकसित करते हैं ।
लघुशीतरूक्षखरविशदसूक्ष्मस्पर्शगुणबहुलानि वायव्यानि, तानि रौक्ष्यग्लानिविचारवैशद्यलाघवकराणि;
वायव्य द्रव्य के लक्षण - जो द्रव्यों में (१) लघु , (२) शीत , (३) रूक्ष , (४) खर , (५) विशद , (६) सूक्ष्म और (७) स्पर्श गुण प्रधान वाले होते है वे वायव्य द्रव्य कहे जाते हैं । ये वायव्य द्रव्य सेवन करने पर शरीर में रूक्षता, ग्लानि, विचार (गति ) विशदता और लघुता उत्पन्न करते हैं।
मृदुलघुसूक्ष्मश्लक्ष्णशब्दगुणबहुलान्याकाशात्मकानि, तानि मार्दवसौषिर्यलाघवकराणि||११|| (च.सू.अ.26)
आकाशीय द्रव्य के लक्षण - जो द्रव्यों में (१) मृदु , (२) लघु , (३) सूक्ष्म (४) श्लक्ष्ण और (५) शब्द गुण प्रधान वाले होते है वे आकाशीय द्रव्य होते हैं। आकाशीय द्रव्य सेवन करने पर शरीर में कोमलता, सुषिरता और लघुता उत्पन्न करते हैं।