ग्रन्थाधार -अर्क प्रकाश
रोगाधिकार - नेत्र रोग
सिद्धान्त - अर्क कल्पना
आवश्यक साधन व उपकरण - स्टैनलेस स्टील का पात्र, भापक यंत्र, ईधन, सूती वस्त्र, कांच की शीशीयां, चूल्हा
मूलपाठः-
द्रव्यादधिकसौगन्ध्यं यस्मिन्नर्के प्रदृश्यते।
जीर्णास्थिपात्रसंक्षिप्तो द्रव्यवर्णः प्रदृश्यते।
शंखकुन्देन्दुधवलोऽन्यथापात्रान्तरस्थितः।
जिह्योपरिगतः स्वादं दद्याद्द्रव्यभवं तु यः।। (अर्क.प्रकाश.1/74,75)
घटक द्रव्य:-
गुलाब के ताजे फूल 1 भाग,
जल - 10 भाग
निर्माण विधि:-गुलाब के फूल की ताजी पंखुडिया 1 भाग लेकर एक स्टेनलैस स्टील के भगौने में 10 लीटर जल में भिगोये प्रातः काल भपके में डालकर सन्धि को आटे से कपडमिट्टी करे व सुखाये भपके को चूल्हे पर चढ़ाकर अग्नि दे । आलवाल में शीतल जल भरने की प्रक्रिया पूर्ववत् रहे। नली के नीचे कांच की शीशी कीप लगाकर रखें जिसमें से बूंद-बूंद गुलाब जल छानकर शीशी में एकत्र होता जायेगा।
अवलोकन:-
1. प्राप्त अर्क में गुलाब की सुगन्ध आती है
2. यह पारदर्षी वर्ण का होता है
परीक्षा:-
1. भपका यंत्र में पानी को लगातार हल्का गर्म होने के बाद बदलते रहे।
2. ध्यान रहे कि अर्क की अग्नि मंद हो व अर्क जले नही
सावधानियाॅः-
1. अर्क निकालते समय तीव्राग्नि का प्रयेाग न करे।
2. जिस पात्र में अर्क प्राप्त करते है उसे ढककर रखे।
3. भापका यंत्र में ऊपर का पानी जब गर्म हो जाये तो उसे निकाल पुनः ठण्डा जल भरें।
वर्ण व स्वरूपः- पारदर्शी सुगन्धित द्रव
सेवन मात्रा:- 2-2 बूंद आखों में दिन मे 2 बार डालें।
अनुपान:-
आमयिक प्रयोग:- नेत्राभिष्यंद आदि नेत्र रोगों, उपयोगी आंखों के स्वास्थ्य के लिये प्रतिदिन लाभप्रद है। प्रवालपिष्टी , अकीक पिष्टी आदि अनेक सौम्य औषधियों में भावना हेतु उपयोगी।
हानि/वृद्धि:- वाष्प बनने के कारण हानि।
विषेष:-अर्क हेतु द्रव्य के साथ जितना द्रव या जल डाला गया हो प्रायः उसका 3/4 भाग अर्क प्राप्त करें। इसके बाद अर्क में जला हुआ भाग आने लगता है।